Sunday, August 28, 2011

जिंदगी क्या है कमबख्त

जिंदगी क्या है कमबख्त,
लुटा-पिटा सा,
सहमा खड़ा है कमबख्त,
बुझता दिया है कमबख्त,
दीपक तले अँधेरा सा,
घुटता समा है कमबख्त,
तंगदिल बुझदिल सा,
खामोश खड़ा है कमबख्त,
स्वप्निल जहाँ का,
एहसास लिए,
मनहूस अड़ा है कमबख्त,
न रोड़ा सा,
न रगडा  सा,
नहीं झगडा सा कमबख्त,
उबासी सा,
उखाड़ा पड़ा है कमबख्त,
जिंदगी क्या है कमबख्त,

Tuesday, August 23, 2011

ठौर बदलते

कभी-कभी उन्मुक्त गगन में,
उड़ते मन को देखा है,
कभी-कभी गहरे जल में,
छिपकर बैठे देखा है,
कभी-कभी तेज पवन में,
हरपल ठौर बदलते देखा है,
इतना अशांत,
कितना भैभीत,
जितना असंकित,
उतना ही अस्थिर,
हर सवाल के जवाब में,
खुद को निचुड़ते देखा है, 
 
 
 

Wednesday, August 10, 2011

कशमकश

ठहर जायेगा वक्त, 
जब समझेंगे वो,
रुकेंगी उनकी भी धड़कने,
जब महसूस करेंगे वो,
सांसो में होगा ठहराव,
जब सोचेंगे वो,
हिस्सों में बटेगी जिंदगी,
जब चाहेंगे वो,
बिना गलती,
होगी शिकायत उनको,
रुठेंगे खुद,
मानेंगे खुद,
कुछ अजीब सी कसक,
कशमकश में वो,
फिरभी अपना सा,
महसूस करेंगे वो.
 
 

Tuesday, August 9, 2011

खामोश

खामोश हूँ,
क्यूँ,
किसलिए,
पता नहीं,
पर अन्दर,
विचारों की उधेड़बुन,
भावनाओ का संगम,
इस सावन में,
जीवन रस,
सराबोर उलझन,
न बंधन,
न रुकावट,
न संकोच,
न अफसोस,
न अलगाव,
एसा लगता है ,
फिसल गया हूँ,
पर गिरा नहीं,
न जाने क्यों,
सबकुछ है कहने को,
पर खामोश हूँ......... 
 
 

Sunday, August 7, 2011

सावन जाने को है

लब खामोश है,
मन विचलित है,
धड़कन भी तेज है आज,
पर सावन जाने को है,
काश एसा हो पता,
ये सावन न जाता,
कुछ दिनों के लिए ही सही,
ये ठहर जाता,
पर वक्त कहाँ थमता है,
उदास है मन,
ये सोचकर,
क्योकि सावन जाने को है,
एहसासों की उधेड़बुन है,
सांसों में ठहराव है,
मन में विस्तार है,
भावनाओ का समुन्दर है आज,
पर सावन जाने को है. 
 
 

Saturday, August 6, 2011

आधा-आधा

मिलती -जुलती सी,
जिंदगी सबकी,
हर दर्द का नाता,
एक सा,
एहसास अलग हों, 
अरमान एक सा,
है अलगाव,
सभी में,
प्रतिक्षण,
न काल चक्र,
न कोई बाधा,
जिन्दा हैं हम,
जैसे सच,
आधा-आधा. 

Saturday, July 9, 2011

धड़कते दिल का शोर


होती है जब बारिश
मन मचल ही जाता है
प्यार की फुहार से
मन भीग ही जाता है
भीगे हैं हम कितनी बार
...साथ-साथ
न वो शर्मिंदा हैं
न हम शर्मिंदा हैं
ये एहसास अब तक जिन्दा हैं
मिलते तो हम रोज़ थे
पर यादें चुनिन्दा हैं
तेज बारिश के शोर में
हम चलते रहे
पर धड़कते दिल का शोर
अब तक जिन्दा है

Saturday, July 2, 2011

फिरभी भीगते है

जब  लगतार  होती  है  बरसात ,
तो  याद  आ  ही  जाती  है ,
उन  पालो  की  जो  बीत  गए ,
उन  दोस्तों  की  जो  व्यस्त  हो  गए ,
कितने  अच्छे  थे  वो  दिन
...कल्लू  का  टपरा और  भीगते  हम ,
दोने   में  भजिये  लिए ,
गप्पें  हकते  हम ,
अब  न  वो  बातें  है ,
न  मुलाकाते  है ,
फिरभी  भीगते  है ,
अकेले  नहीं ,
हम  है  यादें  है ,
और  वो  रास्ता  जिस  पर  हम  चलते  जाते  है .

khoj

शाम होते ही खो जाना चाहता हूँ
खुद से दूर जाना चाहता हूँ
खुछ खो गाया है मेरा
उसे ढूढने बहुत दूर जाना चाहता हूँ
जिंदगी अब सवाल बन गयी है
इसलिए जवाब ढूढ़ना चाहता हूँ 
उलझनों से परेशान नहीं 
उन्हें  सुलझाने अब एकांत चाहता हूँ
मेरी बाते सुन हसते है लोग
माँ कहती है तू अब बड़ा हो गया है
इसलिए अब सयाना बनाना चाहता हूँ .