वो जमाना याद आता है जब बिन कहे सब समझ लिया जाता था.......... सोचते हुए ज्युही एक पत्थर पानी में फेका तभी पीछे से आवाज आयी ...........अब चहूँओर से आबजें आती है जो समझ में ही प्रश्नचिन्ह लगा जाती हैं......क्यों बरखुरदार यही सोच रहे हो न.........
आपको जानकर हैरानी होगी की कल देर रात ख़ामोशी भटकती मिली सिमटी मिली सैरसपाटे के एकांत में.....देखकर अचरज हुआ पर चौका नहीं क्युकी शोर शराबे में यू होना लाजमी है......पहाड़ तो तब टूटा जब ख़ामोशी बोल उठी.....कहने लगी समझ में प्रश्नचिन्ह इसीलिए लग गया क्युकी ख़ामोशी अकुला रही थी सम्प्रेषण केलिए मगर सर पर पैर रखकर भागती जिंदगी को फुर्सत कहाँ ........
इसलिए हमने बोलना शुरू कर दिया और शुकून का अस्तित्व संकट में आ गया.....समय रहते न सम्हले तो अंजाम देख लो तुम मेरे पास आये और हम (ख़ामोशी) बोल उठे....और जाते जाते ये भी कह दूँ की मेरी बातों को किसी से न कहना नहीं तो लोग तुम्हे ही पागल कहेंगे मेरा क्या मै कोइ और ठिकाना दूढ़ लूंगी....
मै भौचक देर तक टकटकी लगाये उसे जाता देखता रहा......रोकने का सहस ही न हुआ.....उस पल यही सोच रहा था इसे रोकूँ अपने साथ ले चलूँ ........मगर आभी हालत ये है की मेरे बोलने पर तो लोग समझते नहीं इसे ले गाया तो.....क्या कोइ मुझे समझेगा........
उधेड़बुन में घंटों बीत गए और जवाब न मिला..........ख़ामोशी भी ठहरी नहीं गाड़ियों की आवाजें आने लगी और ख़ामोशी घिसटते हुए न जाने कहाँ चली गयी......आपको मिले तो जरूर बताना......मै उसे हमेशा केलिए अपने पास रखना चाहता हूँ ........