Thursday, October 18, 2012

मिलता ही नहीं.....

क्या लिखूं 
क्यूँ लिखूं
किसके लिए लिखूं 

सब व्यर्थ 
सब अशांत
सब अस्थिर 

किसे देखूं 
किसे रोकूँ 
किससे कहूँ ठहरो

हर पल बेचैन 
हर पल उल्झन
हर पल रुकावटें

सच क्या है 
सच क्यूँ है
सच कहाँ है

मिलता ही नहीं 
इसका जवाब
क्यूँ हमें
या  तुम्हे............  

Saturday, October 6, 2012

ख़ामोशी भी ठहरी नहीं

                         वो जमाना याद आता है जब बिन कहे सब समझ लिया जाता था.......... सोचते हुए ज्युही एक पत्थर पानी में फेका तभी पीछे से आवाज आयी ...........अब चहूँओर से आबजें आती है जो समझ में ही प्रश्नचिन्ह लगा जाती हैं......क्यों बरखुरदार यही सोच रहे हो न.........
                         आपको जानकर हैरानी होगी की कल देर रात ख़ामोशी भटकती मिली सिमटी मिली सैरसपाटे के एकांत में.....देखकर अचरज हुआ पर चौका नहीं क्युकी शोर शराबे में यू होना लाजमी है......पहाड़ तो तब टूटा जब ख़ामोशी बोल उठी.....कहने लगी समझ में प्रश्नचिन्ह इसीलिए लग गया क्युकी ख़ामोशी अकुला रही थी सम्प्रेषण केलिए मगर सर पर पैर रखकर भागती जिंदगी को फुर्सत कहाँ ........
                         इसलिए हमने बोलना शुरू कर दिया और शुकून का अस्तित्व संकट में आ गया.....समय रहते न सम्हले तो अंजाम देख लो तुम मेरे पास आये और हम (ख़ामोशी) बोल उठे....और जाते जाते ये भी कह दूँ की मेरी बातों को किसी से न कहना नहीं तो लोग तुम्हे ही पागल कहेंगे मेरा क्या मै कोइ और ठिकाना दूढ़ लूंगी....
                          मै भौचक देर तक टकटकी लगाये उसे जाता देखता रहा......रोकने का सहस ही न हुआ.....उस पल यही सोच रहा था इसे रोकूँ अपने साथ ले चलूँ ........मगर आभी हालत ये है की मेरे बोलने पर तो लोग समझते नहीं इसे ले गाया तो.....क्या कोइ मुझे समझेगा........
                          उधेड़बुन में घंटों बीत गए और जवाब न मिला..........ख़ामोशी भी ठहरी नहीं गाड़ियों की आवाजें आने लगी और ख़ामोशी घिसटते हुए न जाने कहाँ चली गयी......आपको मिले तो जरूर बताना......मै उसे हमेशा केलिए अपने पास रखना चाहता हूँ ........  

 

Saturday, July 28, 2012

सुबह की सैर

 दोस्तों इस समय सही मायनों में मिजाज मौसमी हुआ है ! बारिश का पूरा पूरा सहयोग मिल रहा है ! मन मस्ती में मशगूल होना चाहता है! मगर ये क्या आज सुबह शहर रोता हुआ मिला ! मोहल्ले विलाप करते मिले ! आप सोच रहे होंगे ये ट्रैक कैसे बदल गया.....
 
तो जनाब हुआ यु की हम निकले सुबह सैर को तो मोहल्ले की नालियों की सांसे फूल रही थी कह रही थी की खुद तो तारो तजा होने शैर पर जा रहे हो और हमारी सफाई का क्या......कम से कम अस्पताले नगर निगम में डॉक्टरे सफाई को फोन ही कर दो ! ठीक है ठीक है कर दूंगा ! इसीलिए हम सुबह सैर पर नहीं निकलते निकलो तो टोंका टाकी shuru यहाँ गर्लफ्रेंड को यस यम यस करने के पैसे नहीं है इनकी मुराद कैसे पूरी करूँ ! लगा यही से वापस हो जाऊं और जाके फिर सो जाऊ लेकिन मौसमी आनंद का ख्याल वापस नहीं आने दिया और हमने रफ़्तार पकड़ी !

 जूही हम मेन सड़क पर आये तो बिजली के तर आपस में लड़ते मिले और उस लडाई में कुछ तो सहीद भी हो चुके थे और लटक रहे थे ! मैंने खुद को बहुत सम्हाला और नजरंदाज कर आगे बढ़ गया ! रह रह के बस एक ही ख्याल जहन में आ रहा था की अव्यवस्था का आतंक मचा है चहु ओर ! शायद इसीलिए मेघराज गावों में ज्यादा मेहरबान होते है और शहर में कृपा दृष्टी कम करते है ! ताकी शहरी लोग परेशान न हो उनकी बनाई भागमभाग भरी जिंदगी में व्यवधान न हो ! इन्ही ख्यालों में खोया चला जा रहा था की जोरसे पानी का झटका लगा तो चेतना जागी और ध्यान आया की हम सड़क पर है ! लेकिन ये क्या हम तो पूरे मटमैले हो गए वाहनों की मेहरबानी की बदोलत ! और आगे शैर करने की हिम्मत न हुई तो वापस मुड़े ही थे तो सड़क ने कहा की हमें न कोसना ये हमारे शारीर के चेचक है जो रह रह कर फूटते रहते है !

 मुझसे देखा न गया और मै रफ़्तार से घर की ओर बढ़ा हमने सोचा यहाँ पूरा शहर बीमार पड़ा है और हमें सैर की padi है......लेकिन मुझ अकेले से क्या होगा इसलिए आज से मै भी लोगों के मानिंद घर की बालकनी से ही सुबह की सैर करूँगा और किताबी बातों को याद कर खुश हो लूँगा..........ये चिक चिक किसे पसंद है !