हसीन सपना,
जीवन जीने का सपना,
खास सपना,
दिल में रखते हैं सजोकर,
जैसे शरीर में आत्मा !
जिसके पूर्ण होने की लालसा,
अनवरत चलने को करती है मजबूर !
उलझ गया हूँ ,
गिर गया हूँ ,
एक अंधे कुएं में ,
नहीं है कोइ प्रकाश की किरण ,
कुछ समझ नहीं आता,
क्या अंतर है,
सपना और मृगतृष्णा में,
किसने देखा है,
अलौकिक भगवान को,
अकल्पनीय प्यार को,
अतुलनीय सौन्दर्य को,
है कोई उत्तर,
नहीं ना, परन्तु !
आश्चर्य और अविश्वास,
दोनों होता है एक साथ,
क्योंकि,
जिनको ये सब मिला,
उसने कभी,
देखा ही नहीं सपना !
Thursday, October 21, 2010
Tuesday, October 19, 2010
चलो बदल कर देखें
सुबह होती है,
दोपहर होती है,
शाम होती है,
रात होती है,
चलो बदल कर देखें !
क्रम को उलट कर देखें!
सुबह रात है,
दोपहर सुबह है,
शाम दोपहर है,
रात शाम है,
मजे की बात देखें,
नया एहसास देखें,
सुबह उनीदी है,
दोपहर ऊंघती है,
शाम रोती है,
रात सवरती है,
बदलाव को देखें,
उत्पन्न रोमांच को देखें,
क्या लगता है आपको ?
अब भी,
चलो बदल कर देखें !
दोपहर होती है,
शाम होती है,
रात होती है,
चलो बदल कर देखें !
क्रम को उलट कर देखें!
सुबह रात है,
दोपहर सुबह है,
शाम दोपहर है,
रात शाम है,
मजे की बात देखें,
नया एहसास देखें,
सुबह उनीदी है,
दोपहर ऊंघती है,
शाम रोती है,
रात सवरती है,
बदलाव को देखें,
उत्पन्न रोमांच को देखें,
क्या लगता है आपको ?
अब भी,
चलो बदल कर देखें !
Monday, October 18, 2010
चलो आज बात करते हैं
चलो आज बात करते हैं,
लोग क्या करते हैं,
चलो आज बात करते हैं !
सच्चाई कड़वी होती है,
फिरभी निसंकोच अड़ते हैं,
चलो आज बात करते हैं !
लफ्फाजी की बात नहीं है,
प्रश्न अनूठा है,
झुठ्ठो की औकात नहीं है,
फिरभी चापलूसियत झड़ते हैं,
चलो आज बात करते हैं !
बोला कुछ भी न था,
खोला मुह भी न था,
बस शुरुआत हुई थी,
फिरभी अड़ियल झगड़ते हैं,
चलो आज बात करते हैं !
निरंतर यैसा ही होता आया है,
जो बकता है वो मरता है,
फिरभी विचार उमड़ते हैं,
चलो आज बात करते हैं !
लोग क्या करते हैं,
चलो आज बात करते हैं !
सच्चाई कड़वी होती है,
फिरभी निसंकोच अड़ते हैं,
चलो आज बात करते हैं !
लफ्फाजी की बात नहीं है,
प्रश्न अनूठा है,
झुठ्ठो की औकात नहीं है,
फिरभी चापलूसियत झड़ते हैं,
चलो आज बात करते हैं !
बोला कुछ भी न था,
खोला मुह भी न था,
बस शुरुआत हुई थी,
फिरभी अड़ियल झगड़ते हैं,
चलो आज बात करते हैं !
निरंतर यैसा ही होता आया है,
जो बकता है वो मरता है,
फिरभी विचार उमड़ते हैं,
चलो आज बात करते हैं !
कुछ करिए
बोझिल सामज ,
कठोर समाज,
आस्तिक समाज,
नास्तिक समाज,
उत्सवी समाज,
मातमी समाज,
साहसी समाज,
भयभीत समाज,
प्रेमपूर्ण समाज,
घृणित समाज,
दोस्त समाज,
दुश्मन समाज,
ये हमारी सोच पर निर्भर है!
जैसा चाहिए,
गढ़ लो अपना समाज !
कठोर समाज,
आस्तिक समाज,
नास्तिक समाज,
उत्सवी समाज,
मातमी समाज,
साहसी समाज,
भयभीत समाज,
प्रेमपूर्ण समाज,
घृणित समाज,
दोस्त समाज,
दुश्मन समाज,
ये हमारी सोच पर निर्भर है!
जैसा चाहिए,
गढ़ लो अपना समाज !
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